बुधवार, 11 जुलाई 2012

क्योंकि अनुराग कश्यप जैसे लोग कम ही होते हैं

जिंदगी में जोखिम लेकर कुछ नया की चाहत लिए प्रयोग करने वाले लोग कम ही होते हैं। कम से कम से मध्यमवर्गीय तबके में तो शायद लाखों में कुछ ही होंगे। डर लगता है...कहीं फेल हो गए तो...। जो मिल रहा है, वो भी न हाथ से निकल जाए..तो भइया जो है, जितना है..उतना ही सही। लेकिन जिसके पास खोने का कुछ न हो...और लड़-भिड़कर भी मन का काम करने की जिनकी जिजीविषा बनी रहती है....वैसे ही लोग फिल्ममेकर अनुराग कश्यप की तरह बन पाते हैं। गोरखपुर में पैदा होने वाला एक आम शक्ल सूरत वाला लड़का...साइंटिस्ट बनना चाहता है, लेकिन बन जाता है स्क्रिप्ट राइटर और फिर डायरेक्टर। नाटक का खाका तो उसके दिमाग में रहता है, लेकिन नाटकीयता उसे पसंद नहीं। एसी में बैठने वालों को उस कस्बे का दर्द कैसे महसूस हो सकता है, जहां 24 घंटे में छह घंटे ही बिजली आती हो, वो भी एक हफ्ते दिन में अगले हफ्ते रात में। राशन की दुकान में मिट्टी के तेल के लिए हाथ में केन लेकर लाइन लगाने वालों का पसीना...इसी लाइन में खड़ी किशोरी को सामने पान की दुकान में खड़े मनचले का घूरना। कहने का मतलब ये कि...वो सब जो एक आम आदमी महसूस करता है। खबरिया चैनलों में फिल्म समीक्षक जो भी कहें लेकिन अनुराग की हर फिल्म में आम आदमी की फिल्म का अहसास होता है। उनके कलाकार भी गिटार लिए, बाल बढ़ाए ड्यूड टाइप के नहीं बल्कि आम चेहरे-मोहरे वाले ही हैं। चाहे उनकी फिल्म ब्लैक फ्राइडे देखिए या हालिया रिलीज गैंग आफ वासीपुर। कुछ लोग कह सकते हैं कि बहुत गालियां हैं। जबरदस्त मार-काट है। लेकिन क्या वाकई ऐसा होता नहीं। देश के हिंदी पट्टी...कम से कम यूपी के अखबार झांक डालिए। कोई दिन ऐसा जाता हो, जब कहीं एक तो कहीं चार-चार का एक साथ मर्डर न होता हो। गाली गलौज की बात कहना ही बेमानी। रोजाना की इस हकीकत को पिरोकर परदे में दिखा दिया गया तो वो फिल्म ओनली फार एडल्ट हो गई। 

मंगलवार, 1 नवंबर 2011

सेक्स, सत्ता और सेलिब्रिटी


भारतीय समाज में सत्ता और सेक्स और सेलिब्रिटी का आकर्षण सदा से रहा है। नेता जी ने पहले बकरियां पाल रखी थीं। या सिनेमा में टिकट ब्लैक करते थे। टुटहे स्कूटर से चलते थे..आदि..आदि बहुत सुनने को मिल जाएगा। दरअसल इस आकर्षण का बड़ा कारण यह भी है कि पावर या वैभव आते ही, ऐसे लोग पब्लिक से छिटकने भी लगते हैं। उन्हें न उनकी बातें रास आती हैं, न उनका अंदाज। ये भी कोई नई बात नहीं है। इंसान का स्वभाव ही ऐसा है। सदियों-सदियों से चला आ रहा है। बिरले ऐसे लोग होते हैं, जो कामयाबी पाने के बाद भी उसके मद को काबू में रख पाएं। कभी न कभी, कहीं न कहीं उनका ये मद दिखाई पड़ ही जाता है। वे जितना पब्लिक से दूर होने की कोशिश करते हैं, वो उतना ही उनके बारे में जानने की उत्सुक नजर आती है। ऐसे में यह कहकर वे बच नहीं सकते, या उन्हें बचाया नहीं जा सकता कि भई, ये तो उनका व्यक्तिगत मामला है। एक घटना याद आती है। काफी साल पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक विधायक एक कवियत्री की हत्या के मामले में अंदर हो गए थे। उसके बाद पहले उनकी प्रेम कथा और फिर सेक्स कथा खुली। फिर तो अखबारों में एपिसोड शुरू हो गए। मीडिया भी पब्लिक की नब्ज जानती है कि आखिर वह क्या पढ़ना चाहती है। बहरहाल, विधायक जी के घर-द्वार, रसूख, चेले-चपाटे, खेत-खलिहान, रसिक मिजाजी खूब छपी और चाट-चाटकर पढ़ी भी गई। मामला अदालत पहुंचा और अंततः नेताजी अब उम्रकैद काट रहे हैं। अब खबरें आती हैं तो उनकी जेल से जड़े कुछ पुराने मामलों की। मुझे लगता है कि शायद ही इसमें किसी को रुचि हो। क्योंकि जेल में रहते-रहते नेताजी का रसूख तो नहीं सूखा लेकिन जैसा कि मैंने ऊपर लिखा, न पावर रहा, न सेक्स और विधायकी जाने के बाद सेलिब्रिटी वे रहे नहीं।

ये तो थी पुरानी बात। ताजा एक मामला राजस्थान का है। करीब 15 दिन पहले तक मीडिया और सत्ता के गलियारों में एक मंत्री जी की कुछ ऐसी ही कथा बड़ी चर्चा में थी। एक एएनएम गायब थी। उसका पति आरोप लगा रहा था कि मंत्री जी ने उसकी पत्नी को गायब कराया। एएनएम गायब हुई क्योंकि कहा जा रहा है कि मंत्री जी के साथ कोई उसकी सीडी बनी है। इस सीडी में क्या है, बताने की जरूरत नहीं। सभी जानते हैं। मंत्री जी 65 से कम के नहीं है। सीबीआई लगी है तलाश में लेकिन एएनएम है कि मिल नहीं रही। ज्यादातर लोगों का अनुमान है कि एएनएम अब इस दुनिया में नही है। लेकिन इस पूरे मामले में मीडिया ने खबरों में मंत्री के साथ सीडी मामले में...जरूर लिखा। एक वरिष्ठ साथी से मैंने पूछा आखिर सीडी में है क्या।..तो वे बोल पड़े, अब बुड्ढों की सीडी ही देखने को बची है..क्या। देखना होगा तो मार्केटमें 20 रुपए खरच के कोई सीडी ले आऊंगा। मतलब आप भी समझ रहे होंगे। उनका कहना था कि सीडी मामले या एमएमएस मामले में होता क्या है। जनता बहुत समझदार हो गई है। दो शब्द लिखकर उसे पूरी कहानी बताई जा सकती है। राजस्थान की मीडिया में इन दिनों यही दो शब्द लिखकर मंत्रीजी की पूरी छठी-पसनी का वृत्तांत छापने का सिलसिला जारी है। पब्लिक भी पढ़-पढ़कर मजे ले रही है।